squirrel

गिलहरी परिचय

प्रकृति की गोद में कई ऐसे छोटे जीव रहते हैं, जो न सिर्फ अपने अस्तित्व को बनाए रखते हैं बल्कि पूरे पर्यावरण को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इन्हीं जीवों में से एक है गिलहरी। यह नन्हा जीव हमें अक्सर पेड़ों की डालियों पर उछलता-कूदता या जमीन पर बीज व मेवे बटोरते हुए दिखाई देता है। तस्वीर में दिख रही गिलहरी घास पर बैठकर अपने भोजन का आनंद ले रही है। यह नजारा जितना सुंदर है, उतना ही हमें जीवन के बारे में भी सिखाता है।

गिलहरी की जीवनशैली

गिलहरी एक बेहद सक्रिय और चुस्त जीव है। इनके शरीर पर हल्के भूरे और काले रंग की धारियाँ होती हैं, जो इन्हें पहचानने में आसान बनाती हैं। यह धारियाँ इन्हें घास और पेड़ों में छिपने में मदद करती हैं। गिलहरी का जीवन मुख्य रूप से भोजन खोजने और उसे सुरक्षित रखने के इर्द-गिर्द घूमता है। वे दिनभर फल, बीज, मेवे और कभी-कभी कीड़े-मकोड़े इकट्ठा करती रहती हैं।

भोजन और मेहनत

गिलहरी अपनी मेहनत और दूरदर्शिता के लिए मशहूर है। यह सिर्फ वर्तमान के लिए ही नहीं, बल्कि भविष्य के लिए भी भोजन जमा करती है। सर्दियों के मौसम में जब पेड़ों पर फल या बीज उपलब्ध नहीं होते, तब यही जमा किया हुआ भोजन उनके काम आता है। इस प्रकार गिलहरी हमें सिखाती है कि जीवन में हमेशा भविष्य के लिए तैयार रहना चाहिए।

गिलहरी और प्रकृति का संतुलन

गिलहरी सिर्फ अपना पेट भरने के लिए बीज नहीं खाती, बल्कि अनजाने में पेड़ों और पौधों के बीजों को भी फैलाती है। जब वे बीजों को जमीन में दबाकर भूल जाती हैं, तो वही बीज अंकुरित होकर नए पौधे और पेड़ बन जाते हैं। इस प्रकार गिलहरी पेड़ों की वृद्धि और पर्यावरण के संतुलन में एक बड़ी भूमिका निभाती है।

गिलहरी से जीवन के सबक

तस्वीर में गिलहरी को घास पर बैठकर ध्यानपूर्वक भोजन करते हुए देखना हमें जीवन के कई गहरे सबक देता है:

  1. मेहनत का महत्व – गिलहरी दिनभर लगन से काम करती है, यह हमें भी प्रेरित करती है।

  2. भविष्य की तैयारी – आज की मेहनत कल का सहारा होती है।

  3. सादगी और संतोष – छोटी-सी चीज़ में भी खुशी पाना।

  4. प्रकृति से जुड़ाव – हर जीव का पर्यावरण में योगदान है, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो।

भारतीय संस्कृति और गिलहरी

भारतीय संस्कृति में गिलहरी का विशेष स्थान है। रामायण की कथा के अनुसार, रामसेतु (सेतुबंध) के निर्माण में गिलहरी ने भी अपने छोटे-छोटे कणों से योगदान दिया था। भगवान श्रीराम ने उसके इस योगदान को देखकर उसकी पीठ पर तीन धारियाँ बना दीं, जो आज भी हमें गिलहरी के शरीर पर दिखाई देती हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता।

निष्कर्ष

गिलहरी प्रकृति की वह नन्ही रचना है जो मेहनत, दूरदर्शिता और संतुलन की मिसाल है। घास पर बैठकर भोजन करती यह छोटी-सी गिलहरी हमें सिखाती है कि जीवन की सरलता में ही सबसे बड़ा आनंद छिपा है। हमें भी चाहिए कि हम प्रकृति और इसके जीवों से जुड़कर उनसे सीखें और अपने जीवन को संतुलित व सार्थक बनाएँ।

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